एवीएफओ भर्ती में डिप्लोमा होल्डर्स को दूर कर रहा पशुपालन विभाग

BHOPAL.मध्यप्रदेश में सरकारी मशीनरी के अड़ियल रवैए और नियमों की मनमानी व्याख्या से नियुक्तियां बार-बार कानूनी पेंचों में उलझ रही है। इसी फेहरिस्त में एवीएफओ यानी असिस्टेंट वेटरनरी फील्ड ऑफिसर भर्ती भी शामिल है। इस भर्ती में भी सरकारी मशीनरी की गलत व्याख्या और नियमों की अनदेखी की वजह से मामला बार-बार कोर्ट में अटकता रहा।

अपनी मनमानी के विरुद्ध आए हाईकोर्ट के निर्णय से नाखुश पशुपालन विभाग सुप्रीम कोर्ट की शरण भी ले चुका है हांलाकि उसे राहत नहीं मिली। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच भी अंतिम निर्णय सुना चुकी है। इसके आदेश के विरुद्ध सरकार और दूसरे पक्षों की याचिकाएं भी खारिज की जा चुकी है लेकिन पशुपालन विभाग अब कुंडली मारकर बैठ गया है।

फैसले के अधीन नियुक्तियों पर सवाल 

गजब बात ये है कि जब मामला हाईकोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन था तब तक विभाग को नियुक्तियों की जल्दबाजी रही। साल 2019 से 2023 के बीच तीन भर्ती परीक्षा कराते हुए 11 सौ से ज्यादा पद भर डाले। इनमें निर्धारित योग्यता रखने वाले डिप्लोमा होल्डर्स के पदों पर वेटरनरी चिकित्सकों को बेधड़क नियुक्ति दे दी गई।

अब सवाल ये है कि हाईकोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन की गई डिग्रीधारियों की नियुक्तियों का क्या होगा। विभाग ने जिन्हें भर्ती नियमों से बाहर जाकर एवीएफओ बनाया था उनसे कैसे ये पद वापस ले पाएगा। वहीं भर्ती नियमों में डिप्लोमाधारियों को प्राथमिकता देने का स्पष्ट प्रावधान होने के बावजूद मनमानी कर नियुक्ति देने वाले अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होगी। 

स्पष्ट गाइडलाइन फिर भी मनमानी

दरअसल मामला पशुपालन विभाग की असिस्टेंट वेटरनरी फील्ड ऑफिसर भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है। विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण इस पद पर भर्ती की प्रक्रिया विज्ञापन जारी होने के साथ ही कानूनी पेंच में फंस गई। दरअसल केंद्र सरकार ने भारतीय पशु चिकित्सा परिषद अधिनियम 1984 में एवीएफओ के पद के लिए मूल योग्यता पशुपालन विज्ञान में दो वर्षीय डिप्लोमा तय की है।

चार भर्ती में डिप्लोमाधारियों को रखा दूर

पशुपालन विभाग इसकी अनदेखी कर रहा है। इस वह से दो वर्षीय डिप्लोमा हासिल करने वाले एवीएफओ के पंजीयन में भी रोड़े अटकाए गए। वहीं साल 2019 में पशुपालन विभाग के लिए पीईबी यानी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड के माध्यम से 215 पदों पर भर्ती परीक्षा ली गई।

इसमें विभाग ने नियमों की अनदेखी की और ज्यादातर पदों पर वेटरनरी डिग्रीधारी अभ्यर्थियों को प्राथमिकता देकर नियुक्ति कर डाली। अपने हिस्से के पद दूसरों को देने के विरुद्ध मामला हाईकोर्ट पहुंच गया। हाईकोर्ट ने भी डिप्लोमा होल्डर्स को प्राथमिकता देने के निर्देश के साथ नियुक्तियों को अंतिम निर्णय के अधीन रख लिया। 

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नहीं समझे डिग्री-डिप्लोमा में अंतर 

अधिकारी कैसे अपने नियमों की मनमानी व्याख्या करते हैं। कैसे उनके गलत निर्णय की वजह से लोगों को बेवजह मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। एवीएफओ भर्ती के इस मामले को देखकर समझा जा सकता है। पशुपालन विभाग में नौकरी के लिए स्पष्ट गाइडलाइन है। विज्ञापन में भी आवश्यक शैक्षणिक योग्यता में साफ तौर पर दो वर्षीय डिप्लोमा का उल्लेख है लेकिन अधिकारी हैं की मानने तैयार नहीं।

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मौका मिलते ही नियम विरुद्ध नियुक्ति 

साल 2019 में ही मामला हाईकोर्ट पहुंचने और डिग्रीधारियों की नियुक्तियों को अंतिम निर्णय रखे जाने के बाद भी विभाग ने सबक नहीं लिया। उल्टा साल 2022 में दूसरी बार 194 और साल 2023 में तीसरी बार 747 पदों पर डिप्लोमा होल्डर्स की दावेदारी वाले पदों पर डिग्रीधारियों को नियुक्ति दे दी। यानी हाईकोर्ट की पाबंदी को दरकिनार करने से भी पशुपालन विभाग ने परहेज नहीं किया और एक के बाद एक तीन बार में 1156 में से ज्यादातर पदों पर डिग्रीधारियों को पोस्टिंग दे डाली। 

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सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली राहत 

पशुपालन विभाग द्वारा एवीएफओ के पदों पर डिग्रीधारियों की बेरोकटोक नियम विरुद्ध नियुक्तियों पर इसी साल यानी 10 मार्च 2025 को इंदौर हाईकोर्ट बेंच ने अंतिम निर्णय सुना दिया है। इसमें स्पष्ट रूप से एवीएफओ के पदों पर डिप्लोमाधारकों को ही प्राथमिकता देने निर्देशित किया गया है।

इस निर्णय के विरुद्ध वेटरनरी डॉक्टर द्वारा याचिका पेश की गई जिसे डबल बेंच ने 16 मई 2025 को निरस्त कर दिया था। पशुपालन विभाग भी भर्तियों में डिप्लोमा होल्डर्स को प्राथमिकता देने के विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया लेकिन उसकी याचिका इसी माह 3 जुलाई 2025 को खारिज की  जा चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 9 मई के निर्णय को ही पूरी तरह लागू करने का आदेश दिया है। 

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हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी अड़ंगा

पशुपालन विभाग द्वारा दिसम्बर 2024 में असिस्टेंट वेटरनरी फील्ड ऑफिसर के 632 पदों पर भर्ती निकाली थी। डिप्लोमा होल्डर्स को प्राथमिकता का मामला हाईकोर्ट पहुंचने के बाद यह चौथी भर्ती है।

विभाग प्रकरण विचाराधीन होने के दौरान धड़ाधड़ भर्ती करता रहा था और जब हाईकोर्ट ने डिप्लोमाधारियों के पक्ष में निर्णय सुनाया है तो पूरी प्रक्रिया में भी अड़गा डाल दिया गया है। विभाग के पक्षपात के चलते पीछे रहे डिप्लोमाधारी अब नियुक्ति की आस में चक्कर काट रहे हैं और अधिकारी जवाब नहीं दे रहे हैं।

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