
देश दुनिया न्यूज: जगद्गुरु रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज के बीच उठे विवाद में अब स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अपनी एंट्री की है। अविमुक्तेश्वरानंद ने रामभद्राचार्य पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि वह शास्त्रों के खिलाफ जा रहे हैं। सरस्वती ने यह भी कहा, आप कहते हो कि आपने शास्त्रों को पूरी तरह से पढ़ लिया है, लेकिन शास्त्रों में लिखा है कि जो विकलांग होता है, उसे संन्यास का अधिकार नहीं है। फिर आप कैसे शास्त्रों के विपरीत संन्यासी बन सकते हैं?
हम आपकी जय-जयकार करेंगे
अविमुक्तेश्वरानंद ने रामभद्राचार्य को चुनौती देते हुए कहा, आपके पास डेढ़ लाख पेज की जानकारी हो सकती है, लेकिन हम केवल 150 सवाल पूछेंगे। यदि आपने इन सवालों का सही जवाब दिया, तो हम आपकी जय-जयकार करेंगे। यह चुनौती रामभद्राचार्य के धार्मिक ज्ञान पर सवाल उठाने के रूप में देखी जा रही है, और इसने विवाद को और भी बढ़ा दिया है।
अविमुक्तेश्वरानंद का आरोप
अविमुक्तेश्वरानंद ने रामभद्राचार्य पर भी तीखा हमला किया और कहा कि वे ऐसे लोगों को अपना मित्र बता रहे हैं जो गोहत्या में शामिल हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि रामभद्राचार्य खुद धर्माचार्य होने के बावजूद धर्म से संबंधित अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं। अविमुक्तेश्वरानंद ने रामभद्राचार्य के खिलाफ यह भी कहा कि वह तुलसीदास जी और रामानंदाचार्य जी जैसे महान संतों का विरोध करते हैं। इसके अलावा, वे आदि शंकराचार्य और चारों पीठों के शंकराचार्यों के खिलाफ भी टिप्पणी करते हैं।
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रामभद्राचार्य पर राजनीति करने का आरोप
अविमुक्तेश्वरानंद ने रामभद्राचार्य पर राजनीति करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “यह व्यक्ति केवल राजनीतिक सांठगांठ के कारण पुरस्कार प्राप्त करता है और अपने मुंह से ही अपनी प्रशंसा करता है।” उन्होंने तुलसीदास जी का उदाहरण देते हुए कहा कि तुलसीदास जैसे महान ज्ञानी कभी अपनी तारीफ नहीं करते थे, जबकि जो लोग कायर होते हैं, वे अपनी प्रशंसा करते हैं।
अविमुक्तेश्वरानंद का बयान
अविमुक्तेश्वरानंद ने रामभद्राचार्य के खिलाफ बयान देते हुए कहा कि वह केवल राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक मुद्दों पर बयानबाजी कर रहे हैं। उनका कहना था कि धर्म का पालन करने वाले सच्चे संन्यासी स्वयं को कभी नहीं बढ़ावा देते, जबकि राजनीति से जुड़ा व्यक्ति हमेशा अपनी प्रशंसा करता है।
आगे की प्रतिक्रिया
रामभद्राचार्य और अविमुक्तेश्वरानंद के बीच यह धार्मिक विवाद अभी भी जारी है, और अब यह देखना बाकी है कि रामभद्राचार्य इस खुली चुनौती का क्या जवाब देते हैं। साथ ही, इस विवाद से जुड़े अन्य धार्मिक नेता और संत भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे।
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