सोलह कड़वे दिनों के बीच आता है हाथी पूजा का मीठा दिन
प्रदीप धाकड़ / कमल याज्ञवल्क्य
सिटी बीट न्यूज नेटवर्क
बरेली ( रायसेन )।
वैसे तो श्राद्धपक्ष के सोलह दिनों को कड़वे दिन माना जाता है, इन दिनों में सभी शुभ कामों पर रोक लगी रहती है। किन्तु बीच में पड़ने वाली अष्टमी तिथि पर महालक्ष्मी या हाथी पूजा होती है, इस दिन का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्धपक्ष की अष्टमी तिथि को मां लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त है। इस तिथि पर सोना खरीदने को शुभ माना जाता है। इसके अलावा अन्य प्रयोजनों के लिए भी खरीदी के लिए यह दिन उपयुक्त माना जाता है। अंचल में भी श्राद्धपक्ष की अष्टमी तिथि पर महालक्ष्मी, हाथी पूजा परंपरा है। गांवों में महिलाओं द्वारा पारंपरिक रूप से पूजन की जाती है। पूजा के एक दो दिन पहले ही गांवों के प्रजापति मिट्टी के बने हाथी घरों में दे जाते हैं। हाथी पर महा लक्ष्मीनारायण की मूर्ति भी विराजमान रहतीं हैं।
लक्ष्मीनारायण का अनूठा श्रृंगार करती हैं महिलाएं
पूजा के दिन महिलाएं भगवान लक्ष्मीनारायण का अनूठा श्रृंगार करती हैं। आमतौर पर किसी भी देवी देवता के श्रृंगार के लिए बाजारों से सामान लाया जाता है, किन्तु हाथी पूजा के आराध्य महा लक्ष्मीनारायण का श्रृंगार घरों में ही बेसन, आटे के मीठे, नमकीन पकवानों से श्रृंगार कर पारंपरिक रूप से पूजा करती हैं। पवन प्रजापति एवं मोहन प्रजापति ने बताया कि एक गांव में कम से सौ से अधिक मिट्टी के हाथी पूजा के लिए चले जाते हैं। – उन्होंने बताया कि एक महीने पहले से उनका परिवार हाथी बनाने में लग जाता है। हाथी के बदले रुपए और गेहूं मिलते हैं। बताया गया है कि सम्पन्न परिवारों में चांदी के हाथी भी पूजे जाते हैं।
मिट्टी,पीतल एवं चांदी के हाथी की होती है पूजा

बताया गया है कि पहले प्रजापति ही घरों घर मिट्टी से बने बिना रंग रोगन के हाथी देते रहे हैं। अब बाजार में मिट्टी के रंग बिरंगे हाथी बिकने लगे महिलाओं ने बताया कि मिट्टी के साथ ही पीतल और चांदी के हाथी की पूजा की जाती है।












