शिक्षक भर्ती 2018 मामले में HC के आदेश की अनदेखी, प्रमुख सचिव और डीपीआई कमिश्नर को अवमानना नोटिस

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने हाईस्कूल शिक्षक भर्ती मामले में दो अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. संजय गोयल और DPI कमिश्नर शिल्पा गुप्ता से जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा कि पूर्व आदेशों के बावजूद वंचित अभ्यर्थियों को नियुक्तियां क्यों नहीं दी गईं। अधिकारियों को चार सप्ताह में उपस्थित होकर जवाब देने का निर्देश दिया गया है।

कोर्ट के पूर्व आदेश की अनदेखी

मामला 2018 की शिक्षक भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है। प्रदेश सरकार ने हाईस्कूल शिक्षक पद के लिए “द्वितीय श्रेणी में स्नातकोत्तर और बीएड” की पात्रता निर्धारित की थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि NCTE के नियमों के अनुसार पात्रता का आधार 50% अंक होना चाहिए। 

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विश्वविद्यालयों द्वारा दी गई “द्वितीय” या “तृतीय श्रेणी” के आधार पर चयन गलत था। देशभर के विश्वविद्यालयों के ग्रेडिंग मानक अलग-अलग हैं। इसके कारण कई अभ्यर्थियों को 49.9% अंक के बावजूद चयन से बाहर किया गया। वहीं, 45% अंक वाले चयनित हो गए। हाईकोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन मानते हुए नियमों को असंवैधानिक घोषित किया।

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हाईकोर्ट ने दिए थे नियुक्ति के स्पष्ट निर्देश

17 मार्च 2025 को पारित अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा था कि पूर्व की नियुक्तियों को बिना छेड़े, याचिकाकर्ताओं को दो माह में नियुक्त किया जाए। सभी वंचित अभ्यर्थियों के लिए छह माह के भीतर पूरक भर्ती प्रक्रिया पूरी की जाए। हालांकि, इस आदेश के बावजूद शासन ने कोई अमल नहीं किया, जिससे नाराज याचिकाकर्ताओं ने अवमानना याचिकाएं दाखिल कीं।

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आज की सुनवाई में कोर्ट ने जताई गंभीर नाराजगी

आज की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य शासन की नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि बार-बार दिए गए निर्देशों की अवहेलना न्यायिक अपमान है। जस्टिस द्वारकाधीश बंसल ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार जानबूझकर आदेशों की अनदेखी करती है, तो यह गंभीर अवमानना होगी। अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।

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अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर की तीखी प्रतिक्रिया

याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कहा कि यह सिर्फ नियम उल्लंघन का मामला नहीं है। यह आरक्षित वर्गों के संवैधानिक अधिकारों को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति है। 

रामेश्वर ने कहा, “92.79% की जनसंख्या वाला आरक्षित वर्ग नियुक्तियों और प्रमोशन में उपेक्षित है।” यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार के प्रमोशन कानून में संवैधानिक त्रुटियां हैं। इनके खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई हैं।

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डॉ.संजय गोयल | डीपीआई आयुक्त शिल्पा गुप्ता

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