सृष्टि चौवे
बरेली ( रायसेन )।
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और कई भाषाओं की जानकार और उच्च शिक्षित हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)
नवरात्रि हमें यह संदेश देती है कि शक्ति की उपासना जरुरी है। शक्ति स्वरुपा माँ हर नारी के भीतर नारायणी स्वरूप में सजीव और सक्रिय है। माँ दुर्गा के नौ रूप केवल भक्ति के प्रतीक नहीं, बल्कि नारी जीवन की नौ दिशाएँ हैं—संरक्षण, सृजन, सहनशीलता, तेज, पराक्रम, करुणा, दृढ़ता, विवेक और त्याग।
नारी ही गृहलक्ष्मी है, वही सरस्वती का ज्ञान है और वही दुर्गा का अदम्य साहस। यही नारी जब नारायणी बनती है, तो घर–परिवार से लेकर समाज और राष्ट्र तक को स्थिर आधार प्रदान करती है। वह केवल गृहकार्य तक सीमित नहीं, बल्कि परिवार को संबल, समाज को दिशा और राष्ट्र को प्रगति देने वाली शक्ति है।
नारी में होता है जिम्मेदारियों समभाव
नारी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति समभाव का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, फिर भी यह कटु सत्य है कि कुछ क्षेत्रों में आज भी नारी को “सिर्फ़ गृहिणी” कहकर कमतर आँका जाता है। यदि वह बाहर काम करती है तो उसके सामने यह ताना खड़ा कर दिया जाता है कि “इन्हें घर सँभालना नहीं आता।” जबकि यथार्थ यह है कि नारी परिवार और करियर दोनों की जिम्मेदारी समान भाव से निभाती है। इसके बावजूद उसे बराबरी का सम्मान प्रायः नहीं मिल पाता जिसकी वह अधिकारी है। आज भी यदा-कदा दहेज जैसी कुप्रथाएँ उसकी जान लेती हैं। अख़बारों की सुर्खियाँ में बलात्कार और हत्या की घटनाएं भी दिख जाती हैं। उसके सपनों को सामाजिक बदनामी के नाम पर कुचल दिया जाता है। उच्च शिक्षा, अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनना या अपनी इच्छा से वस्त्र पहनना—सब कुछ “लोग क्या कहेंगे” की सोच में कुछ क्षेत्रों में बाँध दिया जाता है।
नवरात्रि का वास्तविक संदेश यही है कि माँ दुर्गा की पूजा केवल दीप–धूप और मंत्रों से नहीं, बल्कि समाज की प्रत्येक स्त्री को आदर और सम्मान देकर पूर्ण होती है। यदि हम सच में दुर्गा की आराधना करना चाहते हैं तो पहले अपनी सोच बदलनी होगी।स्त्री को जीने, पढ़ने, काम करने और अपनी मर्ज़ी से निर्णय लेने का अधिकार देना ही नवरात्रि की सच्ची साधना है। जब नारी को नारायणी स्वरूप मानकर उसका सम्मान किया जाएगा, तभी माँ की पूजा सार्थक होगी और समाज प्रगति की ओर बढ़ेगा।












