
MP News: ये कहानी जंगल की है। ये कहानी एक रानी की है। ये कहानी टी-2 की है। जी हां, मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने वाली बाघिन टी-2 नहीं रही। 2008 में पन्ना टाइगर रिजर्व बाघों से पूरी तरह से खाली हो चुका था। यह सुनकर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि कभी यह जंगल बाघों का ठिकाना हुआ करता था। लेकिन फिर, 2009 में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में अहम कदम उठाया गया।
पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से बाघों से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना का आगाज हुआ। सबसे पहले, 4 मार्च 2009 को बाघिन टी-1 को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से लाया गया और 9 मार्च को बाघिन टी-2 को कान्हा टाइगर रिजर्व से पन्ना लाया गया।
टी-2 को जब पन्ना लाया गया तो उसे बाड़े में कुछ दिन के लिए रखा गया, ताकि उसे जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण करने के लिए तैयार किया जा सके। इसके बाद जब वह जंगल में छोड़ दी गई, तो उसने नई जिंदगी की शुरुआत की। यह बाघिन पन्ना के जंगलों की शान बन गई और बाघों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
21 शावकों की मां, चार पीढ़ियों की नींव
टी-2 का योगदान केवल बाघों की संख्या में वृद्धि तक सीमित नहीं रहा। उसने पेंच टाइगर रिजर्व से लाए गए नर बाघ टी-3 के साथ मिलकर 7 लिटर में 21 शावकों को जन्म दिया। यह पन्ना टाइगर रिजर्व में किसी भी बाघिन द्वारा सबसे अधिक शावकों को जन्म देने का रिकॉर्ड है। इन शावकों ने पन्ना के अलावा सतपुड़ा, संजय, बांधवगढ़ और कई अन्य रिजर्वों में अपना योगदान दिया। टी-2 की चार पीढ़ियों से अब तक 85 संतानें हैं, जो स्वतंत्र रूप से इन जंगलों में विचरण करती हैं।
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इस तरह कायम की अपनी हुकुमत
बाघिन टी-2 की यात्रा पन्ना टाइगर रिजर्व के विभिन्न हिस्सों तक फैली थी। उसने हिनौता, गहरीघाट, मड़ला और अन्य क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। टी-2 के जीवन की सबसे खास बात यह थी कि उसने 19 साल की उम्र तक अपनी जिंदगी जी, जो फ्री-रेंजिंग बाघों के लिए असाधारण जीवन होता है। इसकी उम्र को देखते हुए वन्यजीव प्रेमियों ने इसे मजबूत और साहसी बाघिन माना।
सम्मान के साथ दी गई अंतिम विदाई
28 मई को अमरझाला बीट में टी-2 का शव मिला था। प्रारंभिक जांच के बाद यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि उसकी मौत का कारण क्या था। हालांकि कुछ सूत्रों ने बीमारी या आपसी संघर्ष की आशंका जताई, लेकिन प्रबंधन ने इसे प्राकृतिक मौत माना। बाघिन टी-2 को पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई।
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पन्ना टाइगर रिजर्व का गौरव
पन्ना टाइगर रिजर्व का इतिहास केवल बाघों से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि इसने भारतीय वन्यजीव संरक्षण की दिशा में कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। 1981 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित पन्ना, 1994 में प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। 2009 में जब पन्ना बाघों से पूरी तरह से खाली था तो टी-2 जैसी बाघिनों के प्रयासों ने इसे फिर से बाघों का स्वर्ग बना दिया। आज पन्ना टाइगर रिजर्व में 80 से अधिक बाघ हैं।
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