News Strike: 75 साल वाले बाजू हटो, भागवत के इस बयान के क्या मायने, मध्यप्रदेश के इन नेताओं पर पड़ेगा असर !

संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान से बीजेपी में खलबली मची है। नेशनल लेवल पर इस बयान को लेकर सियासत शुरू हो ही चुकी है। मध्यप्रदेश में भी आरएसएस चीफ के बयान ने कुछ नेताओं की नींद जरूर उड़ा दी है। इस बयान पर अमल हुआ तो प्रदेश के किस किस नेता का चुनावी पत्ता कट जाएगा उस पर तो बात करेंगे ही। ये भी जानेंगे कि इस बयान के बाद क्यों अचानक पीएम मोदी विपक्ष के निशाने पर आ गए।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक सभा में एक बयान दिया है। उन्होंने सीधे कुछ नहीं कहा। न किसी का नाम लिया न किसी पर निशाना साधा। फिर भी उनके बयान के बाद सियासी जमीन थरथराई और बयानों का मलबा बिखरने लगा। इस ट्रेंडिंग टॉपिक के कुछ हिस्से आप छोटी मोटी रील में जरूर देख चुके हैं। लेकिन खबर को टूटे-फूटे अंदाज में समझने की जगह पूरे विस्तार से समझ लीजिए। संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि जब आप 75 साल के हो जाएं तब आपको रुक जाना चाहिए और दूसरों को रास्ता देना चाहिए।

विपक्ष के निशाने पर आए पीएम मोदी

ये बात भागवत ने एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कही। किताब संघ के दिवंगत विचारक मोरोपंत पिंगले को समर्पित थी। इसी किताब और पिंगले के हवाले से भागवत ने ये बात कही। यानी हम ये कह सकते हैं कि भागवत ने खुद सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा। लेकिन, उनके परोक्ष रूप से कहे गए इस बयान के कई मायने निकाले गए। विपक्ष ने तो इसे सीधे सीधे पीएम मोदी पर ही निशाना मान लिया। जो इस साल सितंबर में 75 साल के हो जाएंगे। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस बारे में ट्वीट किया। उन्होंने जो लिखा वो आपकी नजरों के सामने है। जय राम रमेश ने लिखा कि सरसंघचालक याद दिला रहे हैं कि पीएम 17 सितंबर 2025 को 75 साल के हो जाएंगे।

पवन खेड़ा भी इस मामले में चुप नहीं रहे। कांग्रेस नेता ने कुछ इस अंदाज में ट्वीट किया

 

शिवसेना यूबीटी के मुखर नेता संजय राउत भी इस पर बयान देने में कैसे पीछे रह सकते थे। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह जैसे नेताओं को जबरन रिटायरमेंट दिला दिया। अब देखना ये है कि क्या मोदी खुद इसका पालन करेंगे। वैसे जितनी उंगलियां पीएम मोदी की तरफ उठ रही हैं। 

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75 साल वाले बयान से उठने लगे ये 3 सवाल

इस पूरे सियासी घटनाक्रम के बाद कई सवाल भी उठ रहे हैं। पहला सवाल तो यही है कि क्या संघ प्रमुख इस बयान को लेकर गंभीर हैं। और, अगर गंभीर हैं तो दूसरा सवाल ये कि क्या वो खुद 75 साल के होने पर पद छोड़ेंगे। तीसरा सवाल ये है कि क्या इस बयान का असर वाकई बीजेपी में देखा जाएगा। भागवत ने ये बयान भले ही किसी किताब की आड़ में या किसी और व्यक्ति के हवाले से दिया हो। लेकिन, बीजेपी की दशा-दिशा तय करने का काम आरएसएस ही करती रही है। तो क्या इशारों-इशारों में कही गई उनकी बात पर बीजेपी अमल करेगी। और, अगर अमल नहीं करती है तो क्या ये संघ प्रमुख की किरकिरी नहीं होगी।

क्या संघ-बीजेपी के बीच है तल्खी?

इस बयान के बाद संघ और बीजेपी के रिश्ते भी एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं। वैसे तो ये रिश्ता बहुत पुराना है लेकिन पिछले कुछ सालों से इस में तल्खी की खबरें भी आ रही हैं। अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चयन को लेकर ये तल्खी और गहरा भी चुकी है। अंदरूनी अटकलों के मुताबिक संघ अपनी पृष्टभूमि के नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना देखना चाहता है जबकि जबकि आज की बीजेपी सारे सियासी समीकरण साध कर इस पद पर नए नाम का ऐलान करना चाहती है। सूत्रों के मुताबिक, इसी वजह से नए अध्यक्ष का ऐलान भी लंबे समय से टल रहा है। हालांकि अब जल्द ही नए नाम की घोषणा होने की उम्मीद भी है। तो क्या संघ प्रमुख के बयान के पीछे ऐसी कोई तल्खी भी छिपी है।

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उम्रदराज नेताओं को मिलते रहे हैं मौके

वैसे चुनावी प्रक्रिया को अगर आपने गौर से देखा हो तो आप ये समझ ही सकते हैं कि किसी भी नेता को टिकट देने से पहले पार्टी खूब सर्वे करती है। और, टिकट उस कैंडिडेट को दिया जाता है जिसकी जीतने की गुंजाइश सबसे ज्यादा होती है। जीत का दम हो तो उम्र का क्राइटेरिया कोई मायने नहीं रखता। न ही ये कोई लिखित रूल है जिसे फॉलो करना जरूरी है। बात पिछले ही चुनाव की करें तो बीजेपी ने बहुत से उम्र दराज नेताओं को मैदान में उतारा था जिसमें से एक थे 80 साल के नागेंद्र सिंह नागोद, जिन्हें नागौद विधानसभा सीट से टिकट मिला। उनके ही हमनाम यानी कि नागेंद्र सिंह को रीवा जिले की गुढ़ विधानसभा सीट से टिकट मिला, तब उनकी उम्र 79 साल की थी।

लंबी है फेहरिस्त

इन दो के अलावा 76 साल के जयंत मलैया को दमोह से टिकट मिला। चंदेरी विधानसभा सीट के जगन्नाथ सिंह रघुवंशी को 75 साल में। नर्मदापुरम की होशंगाबाद सीट से 73 साल के सीताशरण शर्मा को, 73 साल के ही बिसाहूलाल सिंह को अनुपपुर से टिकट मिला। माया सिंह को भी ग्वालियर पूर्व से 73 साल की उम्र में ही टिकट मिला।
इनके अलावा भी कुछ नेता हैं जो सत्तर की उम्र पार करने के बाद भी चुनावी मैदान में उतरने में कामयाब रहे थे। जिसमें राजगढ़ जिले के खिलचीपुर विधानसभा सीट से हजारीलाल दांगी, नर्मदापुरम के सिवनी-मालवा से प्रेमशंकर वर्मा, शहडोल जिले के जैतपुर से जयसिंह मरावी, रेहली से गोपाल भार्गव, सागर जिले, जबलपुर के पाटन से अजय विश्नोई, श्योपुर सीट से दुर्गालाल विजय और बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन शामिल हैं।

उम्र के क्राइटेरिया पर कई के टिकट काटे

इसी बीजेपी ने 2016 में 76 साल के सरताज सिंह को कैबिनेट में जगह नहीं दी और 2018 के चुनाव में उनका टिकट काट लिया। कुसुम महदेले को भी टिकट नहीं दिया जो अब अस्सी साल के आसपास हैं। और, बाबूलाल गौर के टिकट पर भी तलवार लटकती रहती थी। सबकी वजह उनकी उम्र के क्राइटेरिया में फिट न होना ही बताई जाती रही। वही बीजेपी अब उम्र को लेकर अपनी लाइन बदलती रहती है। बीते लोकसभा चुनाव में भी जब पीएम मोदी की उम्र का मामला गूंजा तब खुद अमित शाह ने इसे विपक्ष का शगूफा बताया और कहा कि पीएम मोदी 75 साल की उम्र के बाद भी सक्रिय राजनीति में रहेंगे। उम्र को लेकर बीजेपी के संविधान में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। उन्होंने ये भी साफ किया कि पीएम मोदी 2029 तक देश की अगुवाई करेंगे और अगले चुनाव में भी पार्टी का नेतृत्व करेंगे।

बीजेपी कई बार इस बारे में अपना स्टेंड क्लियर कर चुकी है। और, अब इनडायरेक्टली ही सही संघ प्रमुख भी कुछ हिंट देते हुए नजर आ रहे हैं। तो क्या ये मान लें कि उम्र का मुद्दा संघ और बीजेपी की रिश्ते को नए सिरे से डिफाइन करेगा।

इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक के लेखक हरीश दिवेकर मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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