पंडित प्रदीप मिश्रा बोले- धीरेंद्र शास्त्री और देवकीनंदन को नहीं कहा जा सकता संत

भारत में संतों को लेकर हमेशा से ही एक बड़ा विमर्श रहा है। हाल ही में, कथावाचक प्रदीप मिश्रा ने संत होने की परिभाषा पर अपनी राय दी और कहा कि संत बनने के लिए केवल कथावाचक होना ही पर्याप्त नहीं है।

पंडित प्रदीप मिश्रा के मुताबिक एक सच्चा संत वह है जो परमात्मा के निकट हो और उसके भीतर शांति और संतोष हो। उन्होंने यह भी कहा कि धीरेंद्र शास्त्री और देवकीनंदन को संत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि संत बनने के लिए बहुत तप और परिश्रम की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, उन्होंने प्रेम को सर्वोच्च भाषा मानते हुए इसे भगवान के निकटता का तरीका बताया।

प्रदीप मिश्रा का संत होने की परिभाषा पर बयान

टीवी चैनल के कार्यक्रम में प्रदीप मिश्रा ने संतों पर अपने विचार रखते हुए कहा कि एक सच्चा संत वह है जो परमात्मा के निकट हो और जिनके भीतर शांति और संतोष हो।

पंडित मिश्रा ने यह भी कहा कि केवल दूसरों को उपदेश देना और खुद पर अमल न करना किसी को संत नहीं बना सकता। उनके अनुसार, यदि कोई व्यक्ति दूसरों को शांति की सलाह दे, लेकिन खुद उग्र और असंतुलित रहे, तो वह व्यक्ति संत नहीं हो सकता।

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धीरेंद्र शास्त्री-देवकीनंदन पर प्रदीप मिश्रा का बयान

प्रदीप मिश्रा ने विशेष रूप से धीरेंद्र शास्त्री और देवकीनंदन ठाकुर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इन्हें संत नहीं कहा जा सकता। उनके अनुसार, संत बनने के लिए परमात्मा से निकटता आवश्यक है, और यह केवल उन व्यक्तियों का लक्षण है जो कठोर तप और साधना से गुजर चुके होते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संतों को अपनी मर्यादा में रहकर बात करनी चाहिए और ऐसा कोई शब्द उपयोग नहीं करना चाहिए, जो लोगों के बीच विवाद पैदा करें।

प्रेम की सर्वोच्चता पर प्रदीप मिश्रा के विचार

प्रदीप मिश्रा ने प्रेम को सर्वोच्च भाषा बताया और कहा कि प्रेम में भगवान के प्रति श्रद्धा और भावनाएं ही महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने उदाहरण के तौर पर प्रेमानंद महाराज की बात की और कहा कि प्रेम की भाषा ही सबसे श्रेष्ठ है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि भक्ति और सरलता के कारण मीरा बाई की रचनाएं आज भी लोकप्रिया हैं, भले ही वह संस्कृत में न लिखी गई हों।

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विकलांग संन्यासी पर प्रदीप मिश्रा की राय

एक अन्य सवाल पर, प्रदीप मिश्रा ने कहा कि विकलांगता के बावजूद कोई संन्यासी बन सकता है, जैसा कि सूरदास जी ने किया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य केवल कथा सुनाना है, साधना नहीं। उन्होंने कहा कि हमें किसी भी व्यक्ति को विकलांगता या शारीरिक स्थिति के आधार पर संन्यासी बनने से रोकना नहीं चाहिए। संतों का मुख्य उद्देश्य मन की शांति और भगवान से जुड़ाव होता है, न कि शारीरिक स्थिति।

संतों के झगड़ों पर प्रदीप मिश्रा बोले-

संतों के बीच अक्सर विवाद और असहमति देखने को मिलती है, और प्रदीप मिश्रा ने इस पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जब संतों के बीच झगड़े होते हैं, तो व्यक्ति भगवान के पास जाता है, क्योंकि वही एकमात्र शरणस्थली होती है।

प्रदीप मिश्रा ने कहा कि एक सच्चा संत वह है जो भीतर शांति और संतोष रखते हैं, और उनका उद्देश्य केवल लोगों की भलाई और मानसिक शांति होता है। संतों को केवल भव्यता और दिखावे के लिए नहीं बल्कि शांति और सुख की ओर मार्गदर्शन करना चाहिए।

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संस्कृत और प्रेम की भाषा पर प्रदीप मिश्रा का विचार

संस्कृत पर उठ रहे सवालों पर प्रदीप मिश्रा ने कहा कि प्रेम की भाषा सबसे श्रेष्ठ है, और प्रेम के बिना कोई भी भक्ति अधूरी है। प्रेमानंद महाराज द्वारा संस्कृत न जानने पर भी प्रदीप मिश्रा ने उन्हें सराहा और कहा कि भगवान को भजने का भाव सबसे महत्वपूर्ण है। उनका मानना था कि भगवान का वास्तविक रूप भाव में छिपा होता है, न कि किसी विशेष भाषा में।

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