
लेखक: श्रीमती अंजली जैन
अध्यक्ष श्री दिगम्बर जैन महिला महासमिति, बरेली
बरेली (रायसेन)।
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व का उद्देश्य मनुष्य को नैतिकता, संयम और आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर करना है। इन्हीं पर्वों में जैन धर्म का प्रमुख और पवित्र पर्व पर्यूषण पर्व है, जिसे आत्मशुद्धि, पश्चाताप आत्मसंयम और क्षमाभाव का पर्व कहा जाता है। इस दौरान जैन अनुयायी तपस्या, जप-तप, स्वाध्याय और दान- पुण्य करते हैं। इस पर्व में विशेष रूप से इसके अंतिम दिन- “मिच्छामी दुक्कड़म ” कहकर दूसरों से क्षमा याचना की जाती है।
आत्म-शोधन का समय है, पर्यूषण पर्व
यह पर्व आत्मा में निवास करने और आत्म-शोधन करने का समय है, यह पर्व मैत्री, दान और संयम के माध्यम से एक सकारात्मक जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा देता है., जैन परंपरा में, इस पर्व के दौरान किए गए तप और आराधना से कई जन्मों के कर्मों का नाश होता है. पर्युषण पर्व के दौरान जैन समुदाय के लोग कठिन तपस्या करते हैं, जैसे उपवास रखना, और नवकार मंत्र का जाप करते हैं। दिगम्बर जैन समुदाय मे यह पर्व भाद्र शुक्ल पंचमी से प्रारंभ होते हैं और भाद्र शुक्ल चतुर्दशी यानि अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है।
होती है दस धर्मों की पूजा
पर्यूषण पर्व 10 दिन तक मनाया जाता है, दस दिन का अपना विशेष मह्त्व होता है क्योंकि प्रतिदिन अलग अलग दस धर्मो की पूजा की जाति है और उस धर्म का अनुसरण किया जाता है-01-उत्तम क्षमाधर्म 02 -उत्तम मार्दव धर्म 03 -उत्तम आर्जव धर्म 04-उत्तम शौच धर्म 05-उत्तम सत्य धर्म 06- उत्तम संयम धर्म 07- उत्तम तपधर्म 08- उत्तम त्यागधर्म 09- उत्तम आकिंचन धर्म 10- उत्तम ब्रम्चर्य धर्म।
जैन समुदाय द्वारा इन दस धर्मों का पालन बड़े ही भक्ति भाव से किया जाता है।
आत्मनिरीक्षण और पश्चाताप का अनुष्ठान
यह पर्व आत्मा के आत्म-निरीक्षण और पश्चाताप का अनुष्ठान है, जिसमें पिछले किए गए पापों की क्षमा मांगी जाती है। क्षमा याचना:पर्व के अंत में “मिच्छामी दुक्कड़म” कहकर, एक-दूसरे से सभी गलतियों के लिए क्षमा मांगी जाती है और यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि दूसरों की गलतियों को क्षमा किया जाए. यह पर्व दिगंबर और श्वेतांबर दोनों जैन समुदायों द्वारा मनाया जाता है। यह भाद्रपद मास में आयोजित होता है- यह पर्व चातुर्मास का भी एक विशेष हिस्सा है, जहाँ साधु और साध्वियाँ एक ही स्थान पर रहकर धर्म की आराधना करते हैं।
पर्यूषण पर्व का अर्थ और महत्व
‘पर्यूषण’ शब्द का अर्थ है – सभी विकारों से दूर होकर आत्मा के समीप रहना। इस पर्व में साधक अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे जैन धर्म के मूल सिद्धांतों का कठोर पालन करता है। यह पर्व साधना, उपवास, स्वाध्याय, ध्यान और तपस्या का उत्सव है। अवधि और पालन पर्यूषण पर्व श्वेताम्बर परंपरा में आठ दिन और दिगंबर परंपरा में दस दिन (दशलक्षण पर्व) तक मनाया जाता है। इन दिनों में उपवास, एकासन, आयम्बिल जैसे व्रत-नियमों का पालन कर साधक अपनी आत्मा को पवित्र बनाने का प्रयास करता है।
गृहस्थ लोग भी इस अवसर पर संयमित आहार, सत्य भाषण और उपवास रखते हैं।
क्षमावाणी का संदेश
पर्यूषण पर्व का सबसे बड़ा संदेश है “क्षमावाणी”। अंतिम दिन सभी जैन श्रद्धालु आपस में “मिच्छामी दुक्कड़म्” कहकर क्षमा याचना करते हैं। इसका अर्थ है – यदि मैंने किसी को जाने-अनजाने में वाणी, विचार या कर्म से दुख पहुँचाया है तो कृपया मुझे क्षमा करें।
वर्तमान समय में जरूरी
आज जब समाज में तनाव, अहंकार और असहिष्णुता बढ़ रही है, तब पर्यूषण पर्व हमें क्षमाशील बनने, परस्पर सौहार्द और अहिंसा की भावना से जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यह पर्व केवल जैन समाज के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए मार्गदर्शक है। इसलिए आज यह प्रासंगिक है।
(लेखक विद्वान समाज सेविका हैं और अपने कर्तव्यों के प्रति सदैव निष्ठावान हैं तथा श्री दिगम्बर जैन महिला महासमिति, बरेली की अध्यक्ष भी हैं )