अदृश्य दबाव: विकासशील देशों में बच्चों पर पारिवारिक दबाव कैसे बन रहा है आत्महत्या और आपराधिक गतिविधियों का कारण… लेखिका: सृष्टि चौबे

30 अप्रेल 2025 बरेली मध्य प्रद्रेश

लेखिका: सृष्टि चौबे

विकासशील देशों में परिवार को अक्सर सुरक्षा, मार्गदर्शन और प्रेम का स्रोत माना जाता है। परंतु अनेक बच्चों के लिए यही परिवार निरंतर अपेक्षाओं और कठोर दबाव का केंद्र बन चुका है। विशेष रूप से शिक्षा और करियर के क्षेत्र में माता-पिता की इच्छाओं को पूरा करने की होड़ में, अनेक बच्चे मानसिक अवसाद,आत्महत्या और यहां तक कि अपराध की ओर भी बढ़ रहे हैं।

उम्मीदों का असहनीय भार
ऐसे समाजों में जहाँ शैक्षणिक सफलता को पारिवारिक प्रतिष्ठा और भविष्य की गारंटी माना जाता है। बच्चे माता-पिता के अधूरे सपनों का भार उठाते-उठाते टूट जाते हैं। भारत में इसका सबसे चिंताजनक उदाहरण देखा गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार वर्ष 2021 में 13,000 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की, जो कि एक चिंताजनक वृद्धि है।

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. राहुल राय कक्कर के अनुसार, आत्महत्या के इन मामलों का मूल कारण सामाजिक और पारिवारिक अपेक्षाओं से उत्पन्न तनाव है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा और असफलता का डर छात्रों को एक स्थायी मानसिक तनाव की स्थिति में धकेल देता है, जिसकी पहचान अक्सर बहुत देर से होती है।

मनोवैज्ञानिक प्रभाव
अत्यधिक हस्तक्षेप और कठोर पालन-पोषण शैली—भले ही वह सद्भावनापूर्ण हो—बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती है। 48 निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों में किए गए एक वैश्विक अध्ययन में पाया गया कि अत्यधिक नियंत्रण रखने वाले माता-पिता के बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति और योजनाएं अधिक देखने को मिलीं।

पूर्वी एशियाई देशों में प्रचलित “टाइगर पेरेंटिंग” शैली, जिसमें बच्चों से लगातार उत्कृष्टता की उम्मीद की जाती है, तनाव और मानसिक विकारों का प्रमुख कारण बन चुकी है। दक्षिण कोरिया जैसे देश, जहाँ शिक्षा की होड़ अत्यधिक है, वहाँ युवाओं की आत्महत्या दर विश्व में सबसे अधिक है।

अवसाद से अपराध तक का सफर
जहाँ कुछ बच्चे इस दबाव को अंदर ही अंदर झेलते हैं और मानसिक अवसाद या आत्महत्या की ओर बढ़ते हैं, वहीं कुछ बच्चे इसे बाहरी व्यवहार में व्यक्त करते हैं—जैसे कि आक्रोश, अवज्ञा, और आपराधिक गतिविधियाँ। परिवार में संवाद की कमी, असफलता का सामाजिक अपमान, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव बच्चों को असामाजिक प्रवृत्तियों की ओर ले जा सकता है।

एशियाई समाजों में प्रचलित एक और अवधारणा—मॉन्स्टर पेरेंटिंग—अत्यधिक हस्तक्षेप और अनुशासन पर आधारित होती है, जिससे बच्चों में विद्रोही प्रवृत्ति और अपराध करने की मनोवृत्ति जन्म ले सकती है।

परिवर्तन की आवश्यकता
इस समस्या से निपटने हेतु हमें निम्नलिखित पहलुओं पर कार्य करना होगा:

मानसिक स्वास्थ्य पर बल: विद्यालयों और समुदायों को मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे बच्चे अपने तनाव को पहचानकर उसका समाधान कर सकें।

माता-पिता का जागरूकता प्रशिक्षण: माता-पिता को यह समझाना आवश्यक है कि सहयोगात्मक और सहनशील पालन-पोषण, कठोर नियंत्रण से कहीं अधिक प्रभावी है।

नीतिगत सुधार: सरकारों को शैक्षणिक दबाव को कम करने वाली नीतियाँ बनानी चाहिए—जैसे वैकल्पिक मूल्यांकन प्रणाली, कौशल-आधारित शिक्षा, और विभिन्न करियर विकल्पों को बढ़ावा देना।

परिवार में खुला संवाद: ऐसा वातावरण बनाना ज़रूरी है जहाँ बच्चे अपने डर, संदेह, और आकांक्षाएँ खुलकर माता-पिता से साझा कर सकें।

निष्कर्ष
माता-पिता की आकांक्षाएं बच्चों के लिए प्रेरणा का स्रोत होनी चाहिए न कि मानसिक बोझ का कारण। हमें यह स्वीकार करना होगा कि हर बच्चा अद्वितीय है—उनकी सफलता की परिभाषा भी वैसी ही होनी चाहिए। जब परिवार, स्कूल और समाज मिलकर एक सहायक, समझदार और स्वतंत्रता-सम्मत वातावरण देंगे, तभी हम आत्महत्या और अपराध जैसे सामाजिक संकटों पर प्रभावी रोक लगा पाएँगे।

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