
यूपी विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने के बाद, राजनीति में एक नया मोड़ आया। लखनऊ के एक फाइव स्टार होटल में भाजपा और सपा के ठाकुर विधायकों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक का नाम ‘कुटुंब परिवार’ रखा गया और इसमें लगभग 40 विधायक शामिल हुए, जिसमें सपा के बागी विधायक भी थे।
यह बैठक उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया संकेत देती है। कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैठक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पार्टी के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है, खासकर आगामी चुनावों को लेकर।
बैठक के आयोजन का उद्देश्य
बैठक का आयोजन विशेष रूप से दो प्रमुख विधायकों, एमएलसी जयपाल सिंह व्यस्त और मुरादाबाद से विधायक ठाकुर रामवीर सिंह ने किया था। इन दोनों नेताओं ने भाजपा और सपा के क्षत्रिय विधायकों को आमंत्रित किया था। हालांकि, बैठक में अन्य जातियों के विधायकों की मौजूदगी कम रही।
बैठक में भाजपा और सपा दोनों पार्टियों के बीच बढ़ती राजनीतिक चुनौतियों और आगामी विधानसभा चुनावों के लिए रणनीतिक योजना पर चर्चा की गई। इसके अलावा, यह बैठक भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और प्रदेश नेतृत्व के लिए भी अहम है, खासकर जब पार्टी में संगठनात्मक बदलाव और मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं हो रही हैं।
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कुटुंब परिवार की एकजुटता और भावी राजनीति
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कुटुंब परिवार की एकजुटता का संदेश प्रदेश भर में फैलने से भाजपा की ताकत बढ़ सकती है। ये बैठक भाजपा को क्षत्रिय समाज से अतिरिक्त समर्थन प्राप्त करने का एक अवसर प्रदान करती है।
बैठक में भगवान राम की मूर्ति, महाराणा प्रताप की तस्वीर और त्रिशूल भेंट किए गए, जो एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में दिखाए गए। यह संदेश भी देने की कोशिश की गई कि भाजपा और क्षत्रिय समाज के बीच मजबूत संबंध हैं।
बैठक में किसका था दबदबा?
बैठक के आयोजन के पीछे दो प्रमुख बाहुबली विधायकों की भूमिका मानी जा रही है। इन विधायकों की रणनीति ने इस बैठक को एक प्रमुख राजनीतिक पहलू बना दिया है। यह बैठक विशेष रूप से पश्चिमी यूपी के विधायकों के लिए मायने रखती है, जहां भाजपा और सपा के बीच राजनीतिक संघर्ष चल रहा है।
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आगामी चुनावों पर असर
लोकसभा चुनाव 2024 और विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर यह बैठक महत्वपूर्ण मानी जा रही है। अगर भाजपा और सपा के बीच क्षत्रिय समाज का समर्थन बढ़ता है, तो इसका चुनावी परिणाम पर गहरा असर पड़ सकता है।
क्या कहते हैं राजनीतिक पंडित?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बैठक के जरिए भाजपा ने क्षत्रिय समाज से अपनी नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की है। विधानसभा चुनावों में क्षत्रिय वोटों का महत्व को देखते हुए, यह बैठक भाजपा के लिए एक रणनीतिक कदम हो सकता है।
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