
मध्यप्रदेश में तहसीलदार और नायब तहसीलदार 6 अगस्त से न तो आधिकारिक हड़ताल पर हैं, न ही अवकाश पर। हालांकि, उन्होंने सामूहिक रूप से काम से अलग रहकर प्रदेशभर में राजस्व कामकाज ठप कर दिया है। इस स्थिति में न सिर्फ सैकड़ों आवेदक रोजाना परेशान हो रहे हैं, बल्कि उम्मीदवारों के प्रमाणपत्र बनना भी रुक गया है।
कई प्रतियोगी परीक्षाओं की आवेदन तिथि करीब आने के कारण आवेदकों पर संकट गहराता जा रहा है। इसी बीच, जबलपुर हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में इस कदम को अवैध घोषित करने की मांग की गई है।
कलेक्टरों पर नहीं चला था तबाव
तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों की मुख्य मांग है कि सरकार न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्यों के विभाजन के आदेश को वापस ले। उनका कहना है कि इस फैसले से संवर्ग के लगभग आधे अधिकारियों को उनके मूल राजस्व कार्य से अलग कर दिया जाएगा।
कई जिलों के कलेक्टर ने इस दबाव को खारिज करते हुए तहसीलदारों के न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्यों का स्पष्ट कार्य विभाजन करते हुए आदेश जारी किए थे।
डोंगल और वाहन जमा कर किया था विरोध
6 अगस्त को प्रदेशभर के तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों ने एक साथ राजस्व कार्यों के लिए मिले डोंगल और वाहन कलेक्टर कार्यालय में जमा कर दिए थे। प्रांताध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह चौहान ने स्पष्ट किया था कि वे लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे हैं और जब तक सरकार कार्य विभाजन का आदेश वापस नहीं लेती, वे काम से दूर रहेंगे।
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80% राजस्व कार्य ठप, जनता परेशान
राजस्व से जुड़े करीब 80% कार्य तहसील स्तर पर होते हैं। तहसीलदारों के काम से हटने से नामांतरण, बंटवारा, विविध प्रमाणपत्र, जमीन संबंधी मामलों सहित तमाम काम रुक गए हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के आवेदकों को रोजाना खाली हाथ लौटना पड़ रहा है।
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हाईकोर्ट में अवैध घोषित करने की मांग
इसी बीच नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ. पी.जी. नाजपांडे और समाजसेवी रजत भार्गव ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर तहसीलदारों के इस सामूहिक काम बहिष्कार को अवैध घोषित करने की मांग की है।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के उन निर्देशों का हवाला दिया है जिनमें स्पष्ट कहा गया है कि शासकीय कर्मचारी हड़ताल नहीं कर सकते। याचिका में उन पिछले मामलों का भी हवाला दिया गया है जब इस तरह की हड़ताल करने पर कर्मचारियों पर जुर्माना तक किया गया है।
कोर्ट से मांग की गई है कि इस कदम को तुरंत रोककर अधिकारियों को कार्य पर लौटने के सख्त निर्देश दिए जाएं। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जो इस विवाद के भविष्य की दिशा तय करेगा।
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