
भोपाल। इंदौर के रसूखदार राजनीतिज्ञों की राजनीति में 4-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर का निर्माण कार्य उलझकर रह गया है। पीडब्ल्यूडी के जिम्मेदार मंत्री राकेश सिंह भी उक्त मामले में माैन नजर आ रहे हैं और राजनीतिज्ञ के चाणक्य माने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय भी मूकदर्शक की भूमिका में नजर आ रहे हैं। टेंडर होने के तीन साल बाद भी निर्माण कार्य में कोई प्रगति नहीं हो सकी है।
इंदौर शहर में एलआईजी से पलासिया चौराहा, एमवाय चौराहा होते हुए नवलखा चौराहे तक 6.2 किलोमीटर लंबाई में बनने वाले 4-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर बनाने वाले ठेकेदार का टेंडर निरस्त किए जाने और राजनीतिक रसूखदारों की मंशानुसार 9 एलीवेटेड कॉरिडोर बनाए जाने के प्रस्ताव पर जल्द ही राज्य सरकार की मुहर लगेगी। हालांकि एलिवेटेड कॉरिडोर का टेंडर निरस्त करने से राज्य सरकार को 35 करोड़ रुपए ठेकेदार को देना होगा।
पीडब्ल्यूडी एलिवेटेड कॉरिडोर बनवाना चाहता है लेकिन इंदौर विकास प्राधिकरण टुकड़ों में 9 फ्लाईओवर बनवाना चाहता है। इस तरह का मत एवं आपसी मतभेद तकनीकी विशेषज्ञों और स्थानीय नेताओं के बीच भी हैं, जिससे एलिवेटेड कॉरिडोर का कार्य ठप पड़ा हुआ है।
सरकार को 35 करोड़ के नुकसान का जवाबदार कौन?
केंद्रीय सड़क निधि अंतर्गत स्वीकृत इंदौर शहर में एलआईजी से पलासिया चौराहा, एमवाय चौराहा होते हुए नवलखा चौराहे तक 6.3 किलोमीटर लंबाई में बनाए जाने वाले 4-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर का अनुबंध निरस्त होने जा रहा है। यदि उक्त टेंडर निरस्त होता है, तो सरकार को 35 करोड़ रुपए की हानि होगी। क्योंकि ठेकेदार को अनुबंध की धारा 23.6 “11” सी के तहत अनुबंधित राशि का 10 प्रतिशत एवं 30 दिन के बाद बैंक ब्याज दर के अलावा 3 प्रतिशत ब्याज का भुगतान करना पड़ेगा।
हालांकि पूर्व में जब उक्त 4-लेन एलिवेटेड रोड का प्रस्ताव तैयार किया गया था, तब भी स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं पीडब्ल्यूडी के चतुरसुजान इंजीनियरों के बीच बैठक हुई थी। सभी की सहमति से उक्त प्रस्ताव ने मूर्त रूप लिया था। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, भारत सरकार ने 8 मार्च 2019 को एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण कार्य के लिए 350 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की।
एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण कार्य के लिए डिजाइन, ड्राइंग एवं सभी स्वीकृतियां मिलने तक जिम्मेदार लोगों ने कोई आपत्ति क्यों नहीं लगाई? जब कि स्वीकृति मिलने के बाद दो साल तक किसी जनप्रतिनिधि ने कोई आपत्ति नहीं उठाई। टेंडर होने के बाद कार्य शुरू होने तक किसी भी जनप्रतिनिधि एवं जिम्मेदार इंजीनियरों की नींद क्यों नहीं खुली? जब ठेकेदार ने कार्य शुरू करते हुए बोरिंग एवं डिजाइनिंग का कार्य पूर्ण कर लिया, तब रसूखदार लोगों ने आपत्तियां लगाना क्यों शुरू की? क्या उक्त आपत्तियों में कोई निहित स्वार्थ छुपा हुआ है? बहरहाल, सरकार को होने वाली 35 करोड़ रुपये की राशि की हानि की जिम्मेदारी कौन लेगा?
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रसूखदारों के रसूख के आगे बेबस पीडब्ल्यूडी
पीडब्ल्यूडी के जिम्मेदार इंजीनियरों की कार्य प्रणाली का आलम यह है कि रसूखदारों के आगे तोते जैसी भाषा बोलने को तत्पर रहते हैं। पूर्व में इन जिम्मेदार अफसरों ने ही जिम्मेदार रसूखदारों से सहमति लेकर कॉरिडोर को बनाए जाने का प्रस्ताव स्वीकृत करवाया।
अब इन्हीं रसूखदारों के दबाव में आकर इंदौर में चल रहे अन्य निर्माण कार्यों का हवाला देते हुए और मुख्य मार्गों पर चार साइड्स के निर्माण के बिना एलिवेटेड कॉरिडोर बनाए जाने को गलत बताने को तैयार हैं। पहले इन्हीं जिम्मेदारों ने कॉरिडोर के निर्माण को सही ठहराया और अब गलत ठहराने की तैयारी में हैं।
क्या है मामला?
दरअसल, इंदौर के व्यस्ततम प्रमुख मार्ग पुराना आगर-मुंबई मार्ग में यातायात को सुगम बनाए जाने के लिए 4-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर का निर्माण किया जाना है। कॉरिडोर के निर्माण के लिए भारत सरकार ने 350 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति 8 मार्च 2019 को प्रदान की।
भारत सरकार द्वारा राशि स्वीकृति के बाद कॉरिडोर के निर्माण के लिए टेंडर जारी किया गया। उक्त निर्माण कार्य की जिम्मेदारी मेसर्स राजकमल बिल्डर्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि., अहमदाबाद को मिली और 17 फरवरी 2021 को अनुबंध किया गया।
करोड़ों के ब्रिज निर्माण कार्य का मजाक
लोक निर्माण विभाग के जिम्मेदार इंजीनियरों और रसूखदार आपत्तिकर्ताओं ने भारत सरकार द्वारा दी गई स्वीकृत राशि का उपयोग करने और करवाने में कोताही बरती। आलम यह रहा कि जब ठेकेदार से 17 फरवरी 2021 को अनुबंध कर लिया और 12 मार्च 2024 को जब निर्माण एजेंसी ने कार्य शुरू कर दिया, इसके पूर्व विरोध-अवरोध का निराकरण क्यों नहीं किया गया? जबकि 9 सितंबर 2021 को रेसीडेंसी इंदौर में मंत्री, सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधियों से विभाग के जिम्मेदार अफसरों ने राय-मशवरा किया, इसके बावजूद 12 मार्च 2024 से ठेकेदार से निर्माण कार्य क्यों शुरू करवाया गया? जब कि उक्त मामले का पटाक्षेप ही नहीं हुआ था।
मुख्य सचिव की बैठक में भी नहीं हो सका निराकरण
दिलचस्प पहलू यह है कि कॉरीडोर के निर्माण मामले में तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में भी 1 जुलाई 2022 को बैठक हुई। हालांकि बैठक में डीपीआर में संशोधन किए जाने की सहमति बनी। एलिवेटेड कॉरिडोर पर बसों के संचालन के लिए निर्माण कार्य दो चरणों में किया जाना सुनिश्चित हुआ।
बैठक में यह भी तय हुआ कि प्रथम चरण में वर्तमान परियोजना को शामिल किया जाए तथा आवश्यकता होने पर राज्य सरकार के हिस्से की अतिरिक्त राशि की स्वीकृति अलग से ली जाए। इसके अलावा दूसरे चरण की जिम्मेदारी इंदौर विकास प्राधिकरण द्वारा अपने व्यय पर पूर्ण करवाई जाए।
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9 फ्लाई ओवर निर्माण की राशि का अभी कोई अंदाजा नहीं विभाग को
दरअसल, चेंज ऑफ स्कोप के मामले की वजह से विभाग के जिम्मेदार अफसर भी 9 फ्लाईओवर के निर्माण में होने वाली राशि का आंकलन करने में असमर्थ नजर आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में सरकार का निर्माण कार्य में विलंब होने की वजह से करोड़ों का नुकसान होने का अंदेशा सुनिश्चित दिख रहा है। क्या फिर बनने वाले 9 फ्लाईओवर भी भगवान भरोसे बनेंगे?
इनका कहना है
जब मैं इंदौर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष था, तब मैंने यह एलिवेटेड कॉरिडोर बनवाए जाने की योजना तैयार करवाई थी। केंद्र सरकार से 350 करोड़ भी स्वीकृत हुए थे। कमलनाथ की सरकार आने के बाद डिजाइन चेंज कर दी गई। उस हिसाब से टेंडर हो गए। पहले इंदौर विकास प्राधिकरण बनाने वाला था, अब पीडब्ल्यूडी बना रहा है। ब्रिज बनाने को लेकर दो पक्ष हैं, एक पक्ष बोल रहा है एलिवेटेड कॉरिडोर बनाया जाए तो दूसरा पक्ष बोल रहा है कि टुकड़ों में फ्लाईओवर बनाए जाए। हालांकि तकनीकी लोगों का कहना है कि एलिवेटेड कॉरिडोर बना दो। एलिवेटेड कॉरिडोर ही बनना चाहिए। सभी का मकसद है कि ट्रैफिक व्यवस्था सुगम हो।
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शंकर लालवानी, सांसद इंदौर
इनका कहना है
एलिवेटेड कॉरिडोर के बारे में मैं समझ नहीं पा रहा। जब उनसे पूछा गया कि कार्य क्यों बंद है, तब मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा, ‘अभी आपकी आवाज समझ नहीं आ रही, आप व्हाट्सएप कर दो। मामला अभी मेरे पूरा संज्ञान में नहीं है। मैं डिटेल लेकर आपसे बात करूंगा।
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तुलसी सिलावट, मंत्री जलसंसाधन विभाग
इनका कहना है
“एलिवेटेड कॉरिडोर की जो डिजाइन थी, उसमें उपयोगिता सिद्ध नहीं हो पा रही थी। चर्चा यह भी आई थी कि इस पर इंदौर विकास प्राधिकरण थोड़ा प्लान बनाकर दे कि ब्रिज को छोटा-छोटा कर क्यों बनाया जाए। एलिवेटेड कॉरिडोर टुकड़ों में बने, यह तो हम भी नहीं चाहेंगे।”
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पुष्यमित्र भार्गव, महापौर इंदौर
इनका कहना है
आप पत्रकार बोल रहे हैं। मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करती हूं। अभी थोड़ा कार्य कर रही हूं। फिर कार्यपालन यंत्री का फोन नहीं आया।
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गुरनीत भाटिया, कार्यपालन यंत्री, ब्रिज
इनका कहना है
पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह एवं नगरीय आवास विभाग के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से इस मुद्दे पर बात करने के लिए मोबाइल लगाया लेकिन बात नहीं हो सकी। बाद में विजयवर्गीय के ओएसडी हरीश गुप्ता के पास भी संदेश पहुंचा कि मंत्री जी से बात करवा दें, लेकिन मंत्री ने बात नहीं की। वहीं आईडीए के सीईओ राम प्रकाश अहिरवार को भी मोबाइल लगाया लेकिन उनका मोबाइल नहीं उठा।
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