
श्राद्ध, तर्पण व पितृ तृप्ति के लिए समर्पित पखवाड़ा
सिटी बीट न्यूज
बरेली (रायसेन)।
रविवार से पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) का शुभारंभ हो रहा है। वैदिक परंपरा के अनुसार यह काल प्रत्येक वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक (कुल 16 दिन) चलता है। इसे पितरों का महापर्व माना जाता है, जिसमें दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन का विशेष महत्व
है।
यह है पौराणिक मान्यता
संस्कृत पाठशाला के आचार्य पंडित शेष नारायण पांडे बताते हैं कि शास्त्रों कहा है कि- श्रृद्धया य: क्रियते,तत् श्रृद्धम कथ्यते। बड़ी श्रद्धा के साथ यह उत्सव मनाना चाहिए। उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता है कि इस अवधि में पितर अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा रखते हैं। महाभारतकालीन कथा के अनुसार, पितामह भीष्म ने पांडवों को पितृपक्ष श्राद्ध का महत्व बताया था। गरुड़ पुराण और मनुस्मृति में भी यह उल्लेख मिलता है कि पितरों के श्राद्ध से उनका आशीर्वाद मिलता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
वैदिक विधान यह है
पितृपक्ष के दौरान प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। कुशासन पर बैठकर जल और काले तिल से तर्पण करने का विधान है। श्राद्ध में “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” का उच्चारण कर पितरों को स्मरण किया जाता है। भोजन में सात्विकता का विशेष ध्यान रखते हुए ब्राह्मणों व जरूरतमंदों को भोजन कराने का विधान है। आचार्य पंडित शेष नारायण पांडे ने बताया कि इस बार पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण होने के कारण दोपहर में 12 बजकर 57 मिनट तक पुरखा बिठाना चाहिए।
हो गईं तैयारियां
बरेली क्षेत्र सहित पूरे रायसेन जिले में पितृपक्ष को लेकर धार्मिक आस्था का वातावरण बन गया है। लोग माँ नर्मदा सहित पवित्र नदियों और सरोवरों के तटों पर जाकर तर्पण करने की तैयारी कर रहे हैं। नगर में भी गृहस्थ परिवार अपने-अपने पूर्वजों की तिथि के अनुसार श्राद्ध की तैयारी में जुट गए हैं।
जिन्हें पूर्वजों की तिथि पता नहीं वह अमावस्या को करें सर्व पितृ तर्पण
आचार्य पंडित शेष नारायण पांडे ने बताया कि आश्विन कृष्ण अमावस्या, जिसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है, पितृपक्ष का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। इस दिन जिन लोगों को अपने पूर्वजों की तिथि ज्ञात नहीं होती, वे सर्वपितृ तर्पण करके संपूर्ण पितरों का स्मरण कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।