
मध्यप्रदेश के 10 जिलों में आने वाले समय में गंभीर सूखे का खतरा मंडरा रहा है। यह चिंता वर्तमान मानसून सत्र की नहीं है, बल्कि यह भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तनों का परिणाम हो सकती है। भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान और मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) के विज्ञानियों द्वारा किए गए संयुक्त अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है।
यह अध्ययन 1958 से 2022 तक के जलवायु आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है और यह सूखे के कारणों का विस्तार से अध्ययन करता है। अध्ययन में यह पाया गया कि औसत वर्षा की कमी और गर्म दिनों की संख्या में वृद्धि के कारण मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में सूखा गंभीर समस्या बन सकता है।
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सूखाग्रस्त जिले
एक अध्ययन में पता चला है कि MP के 10 जिले भविष्य में सूखा संकट का सामना कर सकते हैं। इन जिलों में शामिल हैं। सीधी, शहडोल, सतना, सिंगरौली, उमरिया, पन्ना, कटनी, भिंड, रीवा, मुरैना। इन जिलों में तापमान में वृद्धि और वर्षा के दिनों की कमी देखी जा रही है, जो कृषि, जल संसाधन, और ग्रामीण जीवन को प्रभावित कर सकती है।
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जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा
जलवायु परिवर्तन के कारण इन जिलों में बढ़ते तापमान और वर्षा के दिनों में कमी आई है। 1990 के बाद इन क्षेत्रों में वर्षा के पैटर्न में बदलाव आया है, जिससे यह क्षेत्र सूखा की चपेट में आ सकता है। इन क्षेत्रों के विशेषज्ञों के अनुसार, गर्म दिनों की संख्या में वृद्धि और शीतलन के दिनों में कमी, सूखा संकट को और अधिक गंभीर बना सकती है।
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प्रभाव और समाधान
इस बढ़ते संकट को ध्यान में रखते हुए, विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु अनुकूल रणनीतियों को लागू करना आवश्यक होगा। इसमें फसल बीमा, वित्तीय सहायता, और सामुदायिक प्रशिक्षण जैसे उपाय शामिल हैं। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह सूखा मध्यप्रदेश की कृषि, जल सुरक्षा, और सामाजिक स्थिरता के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
जलवायु संकट के प्रभाव
कृषि पर असर: सूखा के कारण फसलों की पैदावार में कमी हो सकती है।
पानी की कमी: वाष्पीकरण में वृद्धि के कारण पानी की उपलब्धता कम हो सकती है।
स्वास्थ्य पर असर: लू और वायु प्रदूषण की वजह से हीट स्ट्रोक और श्वसन संबंधी बीमारियां बढ़ सकती हैं।
प्राकृतिक आपदाएं: सूखा, बाढ़, और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ सकती है।
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