तीन नाबालिग पाकिस्तानी बच्चों की वतन वापसी पर बना असमंजस, गृह मंत्रालय से मांगे निर्देश

जबलपुर पुलिस को सरकार से मिली सूचना के आधार पर तीन पाकिस्तानी नाबालिग बच्चों की पहचान हुई है, जिनका मामला अब प्रशासन के लिए एक कूटनीतिक चुनौती बन गया है। इन बच्चों के पिता पाकिस्तान के नागरिक हैं, जबकि इनकी मां भारतीय हैं। बच्चों का जन्म और पालन-पोषण भारत में ही हुआ है और वे जबलपुर में निवास कर रहे हैं। इन बच्चों की उपस्थिति की जानकारी केंद्र सरकार के विभाग के द्वारा कलेक्टर दीपक सक्सेना | मध्यप्रदेश को दी गई है, जिसने हाल ही में आतंकी घटनाओं के मद्देनजर पाकिस्तानी नागरिकों को भारत से वापस भेजने के निर्देश दिए थे। लेकिन जब बात नाबालिगों की हो, जिनकी परवरिश भारतीय परिवेश में हुई है, तब यह महज कानूनी नहीं बल्कि गहराई से मानवीय प्रश्न बन जाता है।

क्या मां से अलग हो जाएंगे नाबालिग बच्चे?

प्रशासनिक दस्तावेज़ों और जांच में यह सामने आया है कि बच्चों के पिता पाकिस्तान के नागरिक हैं, इस आधार पर उन्हें भी पाकिस्तानी माना जा सकता है। लेकिन बच्चों की मां भारत की मूल निवासी हैं और उनका पूरा सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन भारत से जुड़ा है। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इन नाबालिगों को भी बिना व्यक्तिगत स्थिति का विचार किए, पाकिस्तान भेजा जा सकता है? भारत के संविधान में बच्चों के अधिकार, बाल सुरक्षा अधिनियम, और मानवाधिकारों के अंतरराष्ट्रीय समझौते ऐसे मामलों में विचार और विवेक की मांग करते हैं। हालांकि कानून के अनुसार यह बच्चे भारत के नागरिक नहीं है लेकिन ये तीनों बच्चे किसी अपराध में संलिप्त नहीं हैं। वे केवल एक पारिवारिक परिस्थिति की वजह से आज सीमा और पहचान के बीच खड़े हैं।

गृह मंत्रालय से मांगे हैं दिशा-निर्देश: कलेक्टर

जबलपुर के जिला कलेक्टर श्री दीपक सक्सेना ने बताया कि इस संवेदनशील मामले में तत्काल पहल करते हुए जबलपुर एसपी के द्वारा भारत सरकार के गृह मंत्रालय को पत्र भेजकर दिशा-निर्देश मांगे हैं। उन्होंने बताया कि नाबालिगों की कानूनी स्थिति को लेकर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की भूमिका सीमित है, और इस विषय में कोई भी कार्रवाई केवल गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार ही की जा सकती है। कलेक्टर ने यह भी कहा कि  किस मामले में जिला स्तर पर कोई भी विचार विमर्श नहीं किया जा रहा है जिस तरह के निर्देश प्राप्त होंगे उसे पर ही कार्यवाही की जाएगी।

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आतंकी हमले के बाद बढ़ी सतर्कता

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकवादी हमले ने पूरे देश को दहला दिया। इसमें कई निर्दोष लोगों की जान गई, जिससे जनमानस में भारी आक्रोश व्याप्त है। इसके बाद केंद्र सरकार ने एक व्यापक रणनीति के तहत पूरे देश में पाकिस्तानी नागरिकों की स्थिति की समीक्षा शुरू की और जहां संभव हो, वहां उनकी वापसी सुनिश्चित करने के आदेश दिए।हालाँकि, जबलपुर में सामने आया मामला इस नीति से भिन्न है। यहाँ तीन मासूम नाबालिग हैं, जिनका इस आतंकवादी घटना से कोई संबंध नहीं है। ऐसे में क्या इन बच्चों को भी सामान्यीकरण के तहत देखा जाना चाहिए? यह सवाल केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

कानून, संवेदना और कूटनीति का संगम

यह मामला अब केवल जबलपुर या मध्य प्रदेश प्रशासन का नहीं रह गया, बल्कि यह पूरे देश की न्याय प्रणाली, मानवाधिकार दृष्टिकोण और कूटनीतिक नीतियों की परीक्षा बन चुका है। तीन मासूमों का भविष्य दांव पर है क्योंकि वे ऐसे देश में भेजे जाने की कगार पर हैं, जहाँ उन्होंने कभी कदम नहीं रखा, जिसकी भाषा, संस्कृति, और समाज उनके लिए अनजाना है। वहीं दूसरी ओर, भारत अपने भीतर सुरक्षा और विदेश नीति को लेकर गंभीर रुख अपनाए हुए है, खासकर पाकिस्तान से जुड़ी संवेदनशीलताओं को लेकर। इस विरोधाभास में संतुलन बनाना ही अब सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

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अंतिम निर्णय पर टिकी तीन मासूम जिंदगियां

जबलपुर जिला प्रशासन पूरी सावधानी और संवेदनशीलता के साथ इस मामले को देख रहा है। पुलिस और जिला कलेक्टर ने बच्चों के खिलाफ किसी भी प्रकार की कठोर कार्रवाई न करते हुए, उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। अब सबकी निगाहें भारत सरकार और गृह मंत्रालय पर टिकी हैं कि जिनके निर्णय से यह तय होगा कि क्या इन बच्चों को उनके जन्म और पालन-पोषण की भूमि भारत में जीवन जीने का अधिकार मिलेगा या उन्हें एक ऐसे देश की ओर रवाना किया जाएगा, जिसे वे जानते भी नहीं। हालांकि यहां पर एक सवाल यह भी खड़ा हुआ है कि इन नाबालिक बच्चों की जानकारी केंद्र सरकार के द्वारा जबलपुर पुलिस को मिली है लेकिन जबलपुर में रोहिंग्या बांग्लादेशी नागरिकों के बिना दस्तावेज के शहर में रहने के लगातार आप भी लगते रहे हैं और ऐसे लोगों की जानकारी कई संगठनों के द्वारा पुलिस को दी गई है लेकिन जबलपुर पुलिस अपने स्तर पर इस तरह के घुसपैठियों को ढूंढने का अब तक कोई प्रयास शुरू नहीं कर सकी है। तो एक और जहां नाबालिक है, जो ना तो भारत और पाकिस्तान की सीमाओं के बारे में जानते हैं और दूसरी ओर वह रोहिंग्या बांग्लादेशी जो कभी भी शहर की शांति को बिगड़ने का कारण बन सकते हैं। अब इनमें से भारत से बाहर पहले किन्हे निकालना चाहिए यह भारत सरकार ही सुनिश्चित कर सकती है।

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